लड़के भी रोते हैं मगर क्यूँ किसी को दिखता नहीं
क्योंकि उन्हें रोने के लिए कोई कंधा मिलता नहीं
जमाने की हिदायतें होती हैं या आंसूं आने पर हंसी उड़ाने वाली निगाहें
यार बचपन का नन्हा फूल, बड़े होने पर यूँ ही सूखा पत्ता बनता नहीं
किसी की कमीज पर नहीं, उनके सख्त हाथों पर मिल जाते हैं
पत्थर पर भी खारे पानी के कुछ दाग मिल जाते हैं
"Gender equality" की दुहाई देने वालों से बस इतना पूछना है
आंसुओं की बात पर क्यूँ लड़का और लड़की अलग कर दिए जाते हैं
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