सुनो ! बात दरअसल ये है कि इसलिए भी हरदम सबको अपनी बनावटी 'सख़्ती' दिखाता हूँ मैं... क्योंकि 'मुझसे' ज्यादा 'मासूम' कोई नहीं है इस 'दुनिया' में इस 'हकीकत' को 'बख़ूबी' जानता हूँ मैं...
'सुनो' ! कि तेरा मुझे 'घमंडी' समझना ही ठीक है तुझसे सब की तरह 'बातें' न करने से... क्योंकि बहुत बुरा लगेगा मुझे जब तू मुझे 'आवारा' मान लेगी दिल से दो-चार बातें करने से...