खुश्बू जैसे तुम मिले अनजाने में,रिस्तों में मशगूल थी सबकी जिंदगी महकाने में।
वैसे दर्द में भी रिश्ते निभाने लगे, पर जिंदगी में सैलाब आ गया रिश्तों को निभा ले जाने में।
रिश्ते वही अच्छे हैं जो निभ गये,वक्त वही अच्छे थे जो साथ बीत गए।
अबाद कर देते हैं रिश्ते पल में बन जाने से, मुझे तो सालो लग गये रिश्तों को बताने और समझाने में।
अब भी विश्वास है रिश्तों को निभा ले जाने में।
जैसे लहरों में नाव को किनारे लगाने में खुशियाँ मिल जाती है माझी को,
वैसे ही खुशियाँ मिल जाती है डुबते रिश्तों को बचाने में।
रिश्ते न जाने कब से कैद थे विराने में, न जाने कैसे रिश्ते बनाते ही चराग जल उठे तुफानों में।
जो खुद बुझ सी गई थी, वो रिश्तों में ज्योत क्या जलाती?
पर आस बाकी है माँ के दरबार में सब अच्छा ही होता है।
लेखक नहीं, न ही कोई कवियत्री, पर लेखनी चल जाती है मन के कोने में बसे हर रिश्तों के नाम।
कभी दर्द तो कभी सकूं दे जाते हैं कभी अपने तो कभी पराये, कभी जानकर कभी अनजाने में।
रजनी अजित सिंह 3.8.18
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