QUOTES ON #संदूक

#संदूक quotes

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13 JUL 2019 AT 6:55

एक संदूक रखी थी अंदर बहुत अंदर,
सबकी नजर से दूर उसके अंतर्मन में,

चुपके से खुलकर कभी आँसू झलकाती,
कभी बिखेरती कुछ खुशियों के मोती,

कर देती उसे फिर तैयार लड़ने को,
वर्तमान परिस्थितियों से जूझने को,

पहले से मजबूत, आत्मविश्वास लिए
कमरकस कर फिर वह खड़ी हो जाती,

अपनी पहाड़ सी परेशानियों के सामने,
स्वयं उनसे भी बड़ी एक चट्टान बनकर...

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14 AUG 2021 AT 16:29

पलकों के सन्दूक में
अवकलित हैं तस्वीरें तुम्हारी
नयनजल पर बाँध बनाया
ना बह जाए कही तस्वीर तुम्हारी

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1 MAY 2020 AT 15:09

तेरे आने से, घड़ी को बंद करके रख दिया था मैंने
संदूक में मगर रात को दिन होने से ना रोक पाए

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15 JUN 2018 AT 12:41

अधूरे ख़्वाबों का संदूक भी खोल दूँ बँटवारे में
अगर मेरे बच्चे उसमें भी हिस्सा माँग लें...

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पैदा हुआ तब खाली संदूक सा था दिल मेरा
फिर ज़िन्दगी भर काश से भरता रहा उसको;

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3 MAR 2021 AT 9:05

मैंने हमारी यादों का एक संदूक बनाया है।
अगर किसी रोज तुम्हें हमारी कोई बातें याद आए
तो आ जाना साथ मिलकर ये संदूक खोलेंगे...

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12 APR 2018 AT 14:22

अपनों को पीछे छोड़ नये ठिकाने की तरफ,
रूख कर लिया है मैंने एक नये ज़माने की तरफ।

हाँ हिचक तो है और मन भारी भी है,
नये शहर में बसने की तैयारी भी है।

मिलने को हर चीज़ मिलेगी उस नये शहर में,
मगर वो हसीन दोस्त कहाँ होंगे किसी पहर में!

यादों के संदूक में सब कैद तो कर लिया है,
फिर भी खालीपन ने भीतर दस्तक दिया है।

एक नये सफर की शुरुआत एक अंत से कर रही हूँ,
खुदको समझाने के लिए खुद से ही लड़ रही हूँ।

अपनों से भी अब दूर होना पड़ेगा,
न चाह कर भी इन अजीज़ पलों को खोना पड़ेगा।

फिर भी एक नये सफर पर निकलना पड़ेगा,
भारी कदमों से ही सही,मुझे चलना पड़ेगा।





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12 MAY 2020 AT 8:42

दिल की संदूक में दफ़न एक बात
अनजानी निकली तेरी तरह..

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ना ख़र्चन को दाम...

ऐ रोजी,
अंदर से दादी की आवाज आई।
वो बिस्तर पे बैठकर घण्टी बजा रही थी।भागते दौड़ते रोजी आई।
जी मेमसाब..
पैर दबाव दादी ने कहा।
पास वाले कमरे में मैं और मेरा मित्र आशीष बैठा था।दादी ने पुकारा, ऐ आशीष इहा आव।
उठकर जाना पड़ा हमलोगों को।पहुंचते ही आशीष को फटकारा।
हमार बात सुनके निकल ले ल..
आशीष चुप चाप अपनी सफाई देने लगा।मैं अखबार पढ़ने लगा। नोटबंदी की खबर थी पहले पन्ने पर।1000 और 500 के नोट बन्द।
इधर दादी अपना ज्ञान देती ही जा रही थी।आशीष की हालत खराब।मैंने बात बदलने के लिए कहा..
ऐ दादी कुछ रुपिया दबले हई त निकाल दे।
1000 और 500 वाला।
दादी ने गुस्से से अचानक पहले मुझे देखा फिर पीछे सन्दूक देखा।फिर बोली..
ना विद्या ना बाहुबल ना ख़र्चन को दाम।हमरे पास कुछो नही बचवा।
विषय मे व्यतिक्रम से दादी ने आशीष का पीछा छोड़ दिया।हम फिर से बगल वाले कमरे में आ गए।
तभी दादी की आवाज आई।
रोजी ई सब का कह रहे थे। मेमसाब मोदी जी 1000 और 500 का नोट बन्द कर दिए हैं।अब उसे बैंक में जमा करना होगा।नही रुपिया बेकार हो जाएगा।
ऐ आशीष बेटा आओ,
हम फिर उनके कमरे में पहुंचे।वो बोली ऐ बेटा हमारे पास 50000 है।संदूक से निकालकर बैंक में डाल दो बचवा।।उनकी इस बात से हम सब हंस पड़े।वो झेंप गयी आशीष ने कहा,ना ख़र्चन को दाम..सब हंस दिए।

सिद्धार्थ मिश्र

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5 JUL 2019 AT 9:12

मां... ने कहा था,
एक संदूक होता है, हर लड़की के अंदर
मुझे कभी मिला ही नहीं था,
पर
अब सहसा, कुछ महसूस हुआ,
दिल के कोने में कुछ...
आखिर ढूंढ़ निकाला संदूक को,
और
काफ़ी साल तक जमा पड़े
मेरे कुछ किस्से,
मेरे कुछ साल, कुछ बहेतरिन लम्हे
और मेरी थोड़ी अनछुई जिंदगी भी,
बड़ी मुश्किल से
संदूक में रख दिए....
दिल
के एक अंदर के कोने में...
कभी नहीं खुलेगा पिटारा
मेरी यादों का संदूक..
मेरे साथ साथ रहेगा, और शायद
मेरे मर ने तलक....
आखिर आज संदूक ढूंढ़ ही लिया मैंने,
संदूक होता है, या फिर उसे कभी ना कभी
ढूंढ़ना ही पड़ता है
तुम ठीक ही कहती हो
मां,

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