पिता सन्तानों का छाता होता है जीवन के आतपों - शीत, धूप, वर्षा से बचाने को दौड़ता रहता है उनके पीछे-पीछे बावजूद इसके कि वे अब बड़े हो गए हैं और छाते की छाया से बाहर कूदते हैं पिता छाता बना दौड़ता रहता है अनजान इस बात से कि छाता अब तार-तार हो चला है
बच्चे हुए बड़े अपने पैरों पर खड़े तोड़ कर बेड़ियां हैं चल पड़े कुछ नया करने की उनकी चाहत है दुनिया नापने की भी हिम्मत है या रब भर दे पावों में ताकत उनके पीछे न हटें जो पांव हैं बढ़े