कितने खाली कोने रह गए
ख़्वाब कुछ संजोने रह गए
रिश्तों की चाहत, ज़द कोई
पत्थर से क्यों ढ़ोने रह गए
मन तो साफ़ है तेरा मुंसिफ़
दाग़ ये किसके धोने रह गए
जबीं चूमी, गले लगाया पर
होकर उसके, होने रह गए
'बवाल' हुआ मैं, मेरे करके
ओ मेरे ही ग़म रोने रह गए
भरा है मन, फ़िर भी देखो!
कितने खाली कोने रह गए
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