QUOTES ON #श्वेता_रुद्रा

#श्वेता_रुद्रा quotes

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23 MAY 2020 AT 16:03

तू काल का भी काल है,
तू रूद्र है, कपाल है,
तू आदि का भी अंत है,
तू अन्त का प्रारंभ है,
जो सृष्टि सारी चल रही,
त्रिशूल पे ही बस रही,
डमरू जो तेरा गूंजता,
कण-कण में प्राण फूंकता,
मृत्यु भी तुझसे कांपती,
जीवन की भीख मांगती,
विष भी हुआ अमृत सा जो,
विषपान तूने कर लिया,
ख़ुद नीलकंठ बन के भी,
कितनों का कष्ट हर लिया,
ये जो जटा से गंगा बहे,
निष्प्राण को जिंदा करे,
जीवन का फिर संचार हो,
हर प्राणी का उद्धार हो,
तू धनक रंग खेत का,
गगन का तू नीलाभ है,
धरा, गगन सभी तुझे,
बस देख कर निहाल हैं..

- Shweta Singh "रुद्रा"

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10 JUN 2020 AT 20:56

मीरा की आभा में,
कृष्ण नज़र आते हैं,
कृष्ण की मुस्कान,
मीरा सी लगती है,

मीरा के नयनों से,
अश्रु जब गिरते हैं,
कृष्ण भी पीड़ा से,
अधीर हो उठते हैं।

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7 JUN 2020 AT 1:53

नशा जब 'उसका' चढ़ जाए, नशा सब फ़ीका है समझो,
जो 'उसके' रंग में रंग जाए, जग उसी का है समझो।

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3 JUN 2020 AT 17:51

ज़िन्दगी मौत का ज़िक्र, हर बात में रखती है,
लम्स-ए-गर्द मुझे मेरे, औक़ात में रखती है।

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5 JUN 2020 AT 0:57

जब सर पर छत और, पेट में अन्न हो,
तब लोग ज़िंदगी को, खेल समझने लगते हैं।

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4 JUN 2020 AT 1:28

इंसान का खाल तो पा लें, इंसानियत कहां से पाएं,
फ़िक्र ओ' नीयत हो निगहबान सा, वो नीयत कहां से पाएं।

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2 FEB 2021 AT 14:48

माटी-माटी तुम बने,
माटी सर से पांव,
माटी से जो दूर हुए,
ना धूप मिले ना छांव।

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10 JUN 2020 AT 21:28

आकाश भी तू,
पाताल भी तू,
मध्य में रच रहा
संसार भी तू...
बिम्ब भी तू,
प्रतिबिम्ब भी तू,
इस सृष्टि का
आधार भी तू...


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4 JUN 2020 AT 3:28

सोच में वेग, कलम में तेज रखते हैं,
हम अपनी बात बिना लाग-लपेट रखते हैं।

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7 JUN 2020 AT 0:34

आसान नहीं होता मौन हो जाना,
क्योंकि, मौन आत्मसाक्षात्कार की,
पहली सीढ़ी है, पहली पदी है,
आत्मसाक्षात्कार वो दर्पण है, जो हमें,
हमारी सच्चाई से परिचित करा देता है,
हमारे सही-गलत का बहीखाता
खोल कर सामने रख देता है...
पूरा जीवन एक चलचित्र की तरह,
घूमने लगता है आंखों के सामने,
और हम मनुष्य अपनी कमजोरियों का,
सामना करना नहीं चाहते, इसलिए
अक्सर हम अपने अकेलेपन से,
घबराते हैं, दूर भागते हैं, क्योंकि,
एकांत हमें मौन की तरफ ले जाता है,
लेकिन जिसने भी इस मौन की
पहली सीढ़ी को पार कर लिया,
जिसने भी पूर्णतः अपने आप को
स्वीकार कर लिया, उसके लिए
मौन और एकांत वरदान हो जाता है,
वो धो लेता है अपने अंतर्मन को,
पश्चाताप के अश्रु से और हो जाता है
निर्मल और पावन, गंगाजल की तरह,
और वो स्थापित हो जाता है
एक साधक के रूप में, और साधना
उसे यम-नियम के आग में तपाकर
कुंदन सा चमका देती है....

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