नज़रों में उनको गिराकर क्या करोगे
बेईमानों का ईमान बचाकर क्या करोगे
जो सिर्फ़ अब अपने लिए ही जी रहा है
उसको अपने दिल में बसाकर क्या करोगे
ज़ख्म गहरे हैं देख ही लेगा कोई ना कोई
तुम अपनी मुस्कान से दबाकर क्या करोगे
जिसके होने ना होने की कोई अहमियत नहीं
उसको अब अपने दिल से भुलाकर क्या करोगे
जब हर हाल में बस ज़हर ही उगलना है तुम्हें
शहद अब उन बातों में मिलाकर क्या करोगे
जीने के लिए कोई शौक़ तो अपने दिल में रख
किसी दूसरे का शौक़ अपना बनाकर क्या करोगे
जिसकी ज़िन्दगी में पहले ही धतूरा है "आरिफ़"
काँटे अपनी दोस्ती के उसको चुभाकर क्या करोगे
"कोरा काग़ज़" मत समझो सबको दुनिया में
उसके दिल में लिखा हुआ मिटाकर क्या करोगे
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