शिव कैसा है...?
जिसे नशा हो सती के प्यार का, तो उसे गांजे से नशे की चाहत क्यूं
जिसे आनंद मिले समाधि से, उसे भांग से आनंद की तलाश क्यूं
जो ख़ुद कालों का काल महाकाल है, उसे त्रिशूल की जरूरत क्यूं
जो देवों का भी देव महादेव है, उसकी इंसानों जैसी मूरत क्यूं
आखिर शिव है कौन....?
कहते हैं, अघोरी है वो, रातों में भूतों संग नाचता है जो
हां लेकिन बड़ा ध्यानी है वो, हर वक़्त समाधि में रहता है जो
इस जीवन मरण से भी परे है वो, खुद समाधि में "शून्यता" है जो
शिव अगर प्रचण्ड है तो शून्य नहीं है वो, व्यर्थ है यहां पर ये प्रचण्डता है जो
शिव अगर शून्य है तो शांत है वो, समाधि से मिली है ये शांतता है जो
शिव... भांग, मदिरा, गांजे इन सब से परे सा लगता है
त्रिशूलधारी, वो प्रचण्ड स्वभाव वाला, प्रेम का पुजारी सा दिखता है
शिव... पंक्ति की वो बिंदु है जो पूर्णतः को दर्शाता है
या मैं कहूं की शिव वो शून्य है जो अनस्तित्व(nothingness) को बतलाता है
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