आज मेहफ़िल सजी है......, तुम ! शायर बन और हम, शायरा बन, आ जाऐंगे। तुम! अपने लफ्जों में, हमें पिरोहना......, और हम, अपने लफ्जों में, तुम्हारा जिक्र कर, सब को सुनाएंगे.......।
एक 'शायर' अगर अपनी 'शायरा' के 'मन' की बात को 'बिन कहें' न जान पाए तो उसे 'ख़ुद' को 'शायर' कहने का कोई 'हक़' नही है। गर बिन कहें समझ लेते हैं वो दोनों एक दूजे के मन की बातें 'अभि', फ़िर कुछ तो बात है उनके दरमियाँ इसमें ज़रा सा भी शक नहीं है।