,सीखो कुछ नन्हे पौधे से
“समझोता” ज़िंदगी जैसे करके ही बढ़ना इसको
सहारा हर पत्ता ,अलग है जो एक दूजे से
“बांधता” साथ में प्रेम मिला जो शाखाओं का इसको
रोज़ सींचना खुदको ,कभी खारे पानी से
“मिलता” रिश्तों में कुछ बूंदों सा भी खट्टास इसको
छाँव की फ़िक्र बस ,दूर रहे जब धूप से
“मुरझाता” बंधन मिट्टी से जड़ों का जब छुड़ाना इसको
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