देखो, शब्दों ने बदली है चाल
लाँघ रही रूढ़ियों की ड्योढ़ी, काट रस्मों की जंज़ीर
मानो लग गये हैं पंख, और तैयार हों भरने को उड़ान
देखो, शब्दों ने बदली है चाल
शब्द ही तो हैं
जो रहते सृष्टि के आदी से अंत तक
इन्हें सिर्फ कहा जा सकता है
इन्हें सिर्फ सुना जा सकता है
इन्हें सिर्फ लिखा जा सकता है
इन्हें सिर्फ पढ़ा जा सकता है
इन्हें न शस्त्र काट सकते हैं, न आग में ये जलते हैं
न हवा सुखा सकती है, न जल में ये गलते है
छुपे होते हैं, सोये होते हैं, रहते हैं समाधी में
किसी कवि के हृदय में,
जब होती है जरुरत, तब लेते हैं ये अवतार।
-