पलट कर जवाब देना बेशक गलत है ...
पर चुप रहो ना तो लोग तमीज़ भूल जाते है !!!-
मरने वाले होंगे तेरे हुस्न पर लाखों शरीफ ,
तेरी सादगी पर मरने वाला पहला शैतान हूँ ।-
ख़ुद से ख़ुद की, दूरी का सिलसिला मेरा कुछ यूँ है,
गलतियों को नियति का लिबास ओढ़ाए रखती हूँ,
शायद शरीफ हूँ, नग्नता नहीं पसंद !!-
एक दौर था जब हम शरीफ हुआ करते थे !
आज शरीफ तो बनना चाहते है-
पर ये जुबान साथ नहीं देती !!-
शरीफो के मोहल्ले में आज हलचल सी है,
बदमाशो ने भी आज गिरेबां चमकाया है,
तवायफ़ों ने सच बोलने की सोची है!-
चलते चलते कदम डर रहे हैं
कि शाम होने को है
शरीफों की बस्ती की ये गलियाँ
बदनाम होने को है
टकरा रहीं हैं बोतलों से बोतल
कोहराम होने को है
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लाख उँगलियाँ उठा लो, मैं तो फ़ितरत की फ़क़ीर ही सही,
गिरेबाँ ज़रा अपना भी झाँक लो, कि तुम शरीफ़ ही सही-
क्यों आज भी हमारी शख्सियत
उन शरीफ लोगों में गिनी जाती है
जिनके ईमान पर अक्सर
उनके अपने सवाल कर बैठते हैं-
किस्सा यूँ शातिर शरीफों का सरेआम ना होता ,
गर निगाहों से क़ातिलों का कत्लेआम ना होता।।-
सियार डरा डरा न रहा ,
शरीफ क भेष घूम रहा ,
शिकार कि ओर ओर बढ़ा -
कि जींव बचा बचा न रहा ....-