क्या दिन थे वो और क्या रातें थी। जब हम सब संग घूमा करते थे।
शरारतों की वो सब बातें थीं। मानो आसमां को चूमा करते थे।
ना कुदरत का कोई ज़ोर था चलता। कोई मौसम सर्द गरम ना था।
क्या आज़ादी के दिन थे वो। जब किसी बात का ग़म ना था।
ना फिकर थी कल की कोई हमको, ना संशय था अनहोनी का।
कभी अंडर टेकर की बातें थीं,तो कभी किस्सा था सचिन या धोनी का
दिन भर की धमाचौकड़ी थी, हम सा कोई हमदम ना था। क्या आजादी.......
एक था गोलू मास्टरमाइंड, हर मिशन प्लान वो करता था।
आम तोड़ना, पतंग लूटना, वो तो लड़ने से भी नहीं डरता था।
कोई भी भिड़ जाए उससे, किसी मे इतना दम ना था। क्या आजादी.......
एक दीदी भी थी, ट्रबल शूटर, हर परेशानी को हल करती थी।
मानो मेरी तो वो बिल्कुल, हमारी टीचर सी नकल करती थी।
सबको भला बुरा बतलाती थी पर, हिस्सा शरारतों में हमसे कम ना था। क्या आजादी.......
नन्हे पैरो से संग दौड़ता। एक छुटकू भी साथ में रहता था।
मटमेले से कपड़ों में रहता वो। बस नाक पोंछता रहता था।
पर देखो दिलेरी में कहीं भी। किसी शावक से वो कोई कम न था। क्या आजादी.......
वो तो टोली मस्ती वाली थी, कभी ईद तो कभी दिवाली थी
कभी टीचर से साथ हम पिटते थे। पर एक दूजे पर हम मर मिटते थे।
कितने बेफिक्र और उन्मुक्त थे हम, जहां कोई जाती धरम ना था। क्या आजादी......
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