छोटे-बड़े सभी तरह के शब्दों से
रोज गुल्लक भरती रहती हूॅं,
हाॅं, कुछ विशिष्ट भारी-भरकम
हजार,पाॅंच सौ के नोटों की तरह
शब्द भी यदा-कदा डाल देती हूॅं।
लोगों की भावनाओं को पढ़कर
हर रोज कुछ ना कुछ
कमा ही लेती हूॅं,
कभी-कभी रोजमर्रा के
खर्च हुए शब्दों में से कुछ
शब्दों को संजो लेती हूॅं,
और भविष्य के लिए
गुल्लक में जमा कर देती हूॅं।
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....... निशि..🍁🍁
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