एक रचना को कहा था, बीस कविता पेल दी
ऊब कर श्रोता मरेगा, क्या करेगी चाँदनी?
एक बुलबुल कर रही है, आशिक़ी सय्याद से
शर्म से माली मरेगा, क्या करेगी चांदनी?
गौर से देखा तो पाया, प्रेमिका के मूँछ थी
अब ये ‘हुल्लड़’ क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी?
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)
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