नहीं बाँधो परों को इन, अभी उड़ान बाकी है
विचरती हूँ जहां में मैं अभी आसमान बाकी है ।।
खुले पर से ही उड़कर के, पता मुझको ये करना है
फ़लक जाती कहाँ तक है, अभी निशान बाकी है ।।
भरोसे अब न रहना है, मिलेगा मान क्या मुझको
कर्म से छीन कर लेना जो, अभी सम्मान बाकी है ।।
भले ही राह दुर्गम है, गिरूँगी फिर उठूंगी मैं
मुझे मालूम है इतना, अभी इम्तिहान बाकी है ।।
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