विकास या विनाश
विकास की दौड़ या विनाश की गति,
क्या समझूं इसे उन्नति या अवनति ।
पैसों से तो अमीर और समृद्ध हो गए,
पर रिश्तों - नातों से गरीब हो गए।
वस्तु के बदले वस्तु, सेवा के बदले सेवा,
यह प्रणाली तो कब की खत्म हो गई है।
अब सबकी कीमत पैसों से ही तय होती है,
लोग अपनों से दूर और पैसों के करीब हो गए।
कभी पैसों की जेब खाली होती थी,
पर खुशियों की जेब भरी होती थी।
पहले पूरा समाज अपना परिवार था,
अब तो अपनी डफ़ली अपना राग है ।
पहले पूरे गांव के लोग अपने लगते थे,
अब तो पड़ोसी भी अनजाने लगते हैं।
लोगों के बीच भाईचारा और प्यार था,
अब तो बस नफरत और व्यापार है।।
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