आती हुई हिचकियों से क्यों बेजार है,
कोई याद करे है, ये सोचना, बेकार है.
पानी पी ले ज़रा, अपना ये, विचार है.
इश्क़ नहीं शरीर का ये कोई विकार है.
घूट घूट कर जीने मे क्या मजा यार है,
अब वो गया, तो क्या, दूसरा तैयार है.
आगे देखें, भूलकर के पीछे संसार है,
अपनी नज़र मे तो, वही समझदार है.
यादों वादों के चक्कर में जी बीमार है,
आती सांसों पे साहब इसी का भार है.
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