✨✍️वार्तालाप एवं सुधार✍️✨ (✍️ काल्पनिक रचना, २०/०६/२०२०)
ज़रा देखिए उस ज़ालिम को,
ज़रा सोचता ही नहीं है कुछ। ...✍️✨
आखिर क्या हुआ उस तालीम को
जिसे पाता था शिद्दत से रोज पूछ। ...✍️✨
कभी लोगों के मध्य मशहूर था वो,
धूमिल हो गई इज्जत न जाने क्यों? ...✍️✨
अब तो यूँ बातों बात में उसे बकवास पसंद था,
कारण यही थी कि लोगों के बीच नजरबंद था। ...✍️✨
हाँ, बिन अल्फाज़ों के अफसाना भी तो अधूरी है।
पर कुछ कहने से पहले सोचना भी तो जरूरी है। ...✍️✨
बक बक करने वालों की करोड़ों की तादाद है यहाँ,
विचित्र है यह बात विस्मित जो करती हमें बेइंतहा। ...✍️✨
वक्त, कब कैसे कहाँ, क्यों मोड़ लेगी, न किसी को है पता।
वार्तालाप कोई भी हो वह ऐसा हो कि न कोई भी हो खता। ...✍️✨
ज़रा थोड़ा ही करें सुधार न ज्यादा, मुझ "ऋषि" से देखा जाएगा।
पता जो है वह खुद ही गलत अभी, वह सुधर के फिर से आएगा। ...✍️✨
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