आलम है यह बहार का, अब क्या कीजिये,
हर फूल है उधार का, अब क्या कीजिये..
कल तक जिनकी नज़रों में कैद थे हम,
वो खुद ही हैं फरार, अब क्या कीजिये..
रूह बिकती हैं, जिस्म बिकते हैं अब यहाँ,
मुफ्त के प्यार का ऐतबार, अब क्या कीजिये..
सारी ज़िन्दगी जिन पर वार दी हमने,
वाही पीठ पर दें वार, अब क्या कीजिये..
कतरे कतरे को मोहताज है खुद फलक यारों,
सुख की बारिश का इंतज़ार, अब क्या कीजिये...
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