सपनों के सौदागर में, मिली थी मंजिल एक
बिछड़ा कुछ ऐसा लम्हा जो टूटा वहम अनेक
खुशियां का बहार था, वो जब रहते थे साथ
आज वक़्त है इस मोड़ पर हो गए हम अनेक
कैसे जगाया नींदों को मैने, कैसे कराया पूरा
ख़्वाब ही मुकम्मल ना हुआ, थे हम जब एक
भूल चुका रातों को मैने, भूल चुका तेरा साथ
कुछ ना था पास मेरे सिर्फ़ वहम था मेरा हाथ
उठ जाता हूं नींद से मैं, जब पाता हूं अकेला
भरोसा नहीं तारों पर भी, ये भी है यहां अनेक
सपनों के सौदागर में, मिली थी मंजिल एक
बिछड़ा कुछ ऐसा लम्हा जो टूटा वहम अनेक
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