#ये बरसों पुरानी शाम..
रोज़ आती है..
नई हवा लेकर..
महक लेकर..
कभी नाचती सी
कभी कंपकपाती हुई..,
उदास तुम क्यों होती हो...फ़िर
बताओ....बताओ ना..
बताओ तो....!!
चलो बता देना...
मुझे नही....इस शाम को..
तब.....तुम
हाँ तुम ही...
छोड़ दोगी कोसना
खुद को....
क्योंकि मिल सकोगी तुम
इस शाम से जब..
सारे ग़म... और गमों के बंधन
छूट जायेंगे ,
ये जो शाम हैं ना..
ले जाएगी....
तेरी सारी उदासियाँ...निचोड़कर....!
बस तुम ज़रा सा
ये करो.....
थाम लो....पकड़ लो
इस शाम को...
बरसों से बरसों पुरानी सी शाम को...
पकड़ोगी ना.... हैं ना..!!
समझी...!
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