सोये हुए दिलों में जज़्बात चाहिए,
आदमी में आदमी की जात चाहिए।
ज़हर पी रहा है और ज़हर उगल रहा है ,
अपनी शह और दूसरे की मात चाहिए ।
नफ़रत और द्वेष ज़हनों में भर गए हैं,
प्यार भर जाए दिलों में वो बात चाहिए।
हिंसा से ही मसलें क्यूं हल हो रहे हैं,
हर दिल में नरमी की सौगात चाहिए।
डर-डर के जीने से हम बाज आ गए,
महफूज़ रह सके घरों में वो हालात चाहिए।
अपनी ही गर्ज में बस इंसान जी रहा है,
फिक्रमंद हो सभी का ऐसी करामात चाहिए।
........ निशि ..🍁🍁
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