उम्र की उस स्थिति में आ गया हूँ
कि बुढापे में किसी बच्चे सा हो गया हूँ
चाहता हूँ कि कोई संभाले मुझे बच्चे की तरह
पर किसी के पास वक़्त नही,व्यर्थ जो हो गया हूँ
छोटा हो गया हूँ इतना कि घुटनों पर चलता हूँ
बड़ा हूँ इतना कि कदमों पर चला नही जाता
जिंदगी ने मुझे कितना लाचार बना दिया
अब निवाला भी उठाकर खाया नही जाता
पर ये मेरी पीड़ा का कारण नही,
दुख इतना सा है कि,,,,,
एक उम्र गुजार दी मैंने जिनका जीवन सवारने में,
आज मेरी उस औलाद से मेरा बुढ़ापा उठाया नही जाता
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