कभी खुशियां कभी गम की, मुकम्मल ये कहानी है
बड़ी छोटी सी मेरे दोस्त, मोहब्बत की जवानी है
सुना है ज़माने में, हैं कुछ अश्कों के सौदागर
समझते हैं जिसे मोती, महज़ आंखों का पानी है
निगाहों में बसा इक शख्स, है कुछ यूं उतर रहा
लहू आंखों से बहता है, ये इश्क़ की निशानी है
बहुत बेचैन रहता है, अपने किरदार में परिंदा
मौत आज़ाद करती है, क़फ़स में जिंदगानी है
जिसे तुम ढूंढ़ते फिरते हो, कहीं नहीं है ज़माने में
तुम्हे अपने ही हाथों से अपनी तकदीर बनानी है
सुकूं मिल जाए दिल को, कुछ ऐसा कर गुज़र "निहार"
तुझे ये दास्तां अपनी, अभी बहुतों को सुनानी है
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