उम्मीदों की,
परंपराओं की,
चहारदीवारी में क़ैद
लड़कियाँ
त्याग कर इच्छाएँ,
हार कर सबकुछ,
लिखती हैं कविताएँ
अक्सर
बग़ावत पर,
अड़ियलपन पर,
और कर लिया करती हैं
ख़ालीपन की खानापूर्ति,
दे लिया करती है
मन को झूठी तसल्ली,
कर के ज़िक्र
स्वच्छंदता का
आवारा-मिज़ाजी का,
क्यूँ कि,
वो बस इतना ही जानती हैं
कि, अगर वे नहीं
तो उनकी कविताएँ सही!
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