फसलों के ह्रास को, जेठमासे की प्यास को,
अमिया की खटास को, गन्ने की मिठास को,
खाली हाथ फ़क़ीर को, लकीर के फकीर को,
ख़्वाबों की तासीर को, हकीकत की नज़ीर को
खामोशी की आवाज को, लफ्ज़ों की साज को,
जज्बातों के ज्वार को, मोहब्बत के इक़रार को
प्रेमिका की करार को, प्रेमी के बेक़रार को,
रूह के फरमान को, दिल के उठे अरमान को,
प्रेम के एहसास को, ख़त किसी ख़ास को,
स्त्री के श्रृंगार को, दंपत्ति की तकरार को,
मंद मंद समीर को, उठ चुके ख़मीर को,
स्पंदनहीन शरीर को, मर चुके ज़मीर को,
अँखियो के नीर को, उजड़ चुके कुटीर को
सावन की बहार को, बरसात की फुहार को
नवजात की झंकार को, श्मशान की अंगार को,
सुहागिन की मल्हार को, विधवा की पुकार को,
यौवना के अंग आकार को, झुरियों के साकार को
वासना की उभार को, विरक्ति के इस संसार को,
चाहता हूँ मैं लिखना....पर शब्द नहीं हैं! _राज सोनी
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