QUOTES ON #रक़ीब

#रक़ीब quotes

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26 OCT 2019 AT 20:21

दीवारें बोल सकतीं
तो कहतीं
रक़ीब मानकर
जिनकी करते हो बुत परस्ती
उस मोहब्बत के लिए
वो रहीं उम्र भर सिसकती.

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7 MAR 2020 AT 16:38

हम चाहते तो तेरे शहर में मशहूर होने जा सकते थे।
लेकिन हमने रक़ीब के शहर में जाना बेहतर समझा।।

हम चाहते तो हम भी हिज़्र में,आवारापन ला सकते थे।
लेकिन अम्मा के सपनों को हमने सजाना बेहतर समझा।।

हम चाहते तो बना-बनाया महल तो हम भी पा सकते थे।
लेकिन हमने एक छोटे से घर को बनाना बेहतर समझा।।

हम चाहते तो किसी और की हम बाहों में जा सकते थे ।।
लेकिन बस तेरी बाहों में हमने आना बेहतर समझा।।❤

लोग हमें कहते थे हमको जल्दी नज़र लग जाती है।।
तभी तो हमने सबसे अपनी DP छुपाना बेहतर समझा।।
✍️राधा_राठौर♂

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4 JUL 2020 AT 7:26

"जरूरी है क्या"

पास जो आ रही हो मेरे, कोई मजबूरी है क्या।
हमारा तुम्हारा मिलना, अभी जरूरी है क्या।

ठुकरा कर गयी थी यूँ कि, बेवफाई की हो मैंनें
अब रक़ीब ने कर ली, तुमसे बहुत दूरी है क्या।

कल कह रहा था कोई, देखा तेरे महबूब को गैर के साथ
इतना जो महक रही हो, बाहों में उसकी कस्तूरी है क्या।

कहा था तुमनें सरेआम कि, तुम मेरे काबिल नहीं हो
फिर से इश्क कर रही हो, दिल की भी मंजूरी है क्या।

पास बैठ मेरे गुफ़्तगू करो तुम, पहले तो नहीं हुआ यूँ कभी
कुछ प्यार की धुन सुन रहा हूँ, होंठों पे तेरी बांसुरी है क्या।

सीखा दिया था मैंनें इस दिल को, सलीका तेरे बगैर जीने का
अब चाहती हो मुकम्मल करना, कहानी मेरी अधूरी है क्या।

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5 AUG 2018 AT 7:25

नही उतारेंगे अशआर मोहब्बत के,
सहारे हमारे वो रक़ीब पर चढ़ जायेंगे ।।

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9 JAN 2019 AT 12:31

रक़ीबों से तुम्हारी दोस्ती है
ग़ज़ब अंदाज़ रखते हो मियाँ तुम।।

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29 JUL 2021 AT 19:08

"हिज्र की गर्माहट में यादों

की हवाएं नहीं बहाना,


तुम्हें कसम है, नए रक़ीब

को मेरे बारे नहीं बताना......"

#यूँ_ही 🙃🙃

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8 OCT 2018 AT 18:56

ग़म, उदासी, बेवफ़ाई, क्या नहीं हमको मिला
ऐ रक़ीबों तुमको हमसे रश्क होना चाहिए।।

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7 MAY 2020 AT 10:41

एक दौर था जिंदगी का जब एक हम ही तेरे तलबगार हुआ करते थे और एक आज का दिन है कि हर कोई ख़ुदको तेरा मुरीद बता रहा है....
हमने तेरा जिक्र करना क्या छोड़ा जमाने को जैसे छूट ही मिल गई हो इश्क फरमाने की हर एरा गैरा नत्थू खैरा कमबख्त ख़ुदको रक़ीब बता रहा है...

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20 FEB 2018 AT 8:09

ओझल मुस्कुराहट भी अहद से कुछ नासमझी कर गई
की रक़ीब की चाहत अब बेतुका सा पल्लू झाड़ने को है

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25 JUL 2017 AT 21:55

इस रंज-ओ-ग़म पैहम से दिल-चाक किये बैठा हूं
रक़ीब जला गया घर मिरा मैं ख़ाक लिए बैठा हूं।।

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