जंग चली निगाहों में , लोग खड़े कतारों में, कत्ल हुए इशारों में, बदन पड़े बाजारों में, मंडियां लगी टोली में, गोलियां चली बोली में, पैसे मिले चंद सिक्कों में, रोटियां तब आई हिस्सों में।
जब से "ब्रम्हा" ने सृष्टि रची तब से आज तक, "बारातियों" को कोई "प्रसन्न" नहीं रख सका, उन्हें "दोष" निकालने और "निंदा" करने का कोई-न-कोई अवसर मिल ही जाता है, जिसे अपने घर "रोटीयां" भी मयस्सर नहीं, वह भी "बारात" में "तानाशाह" बन बैठता है..!! :--किताब निर्मला(प्रेमचंद)
भूख ना देखती है होटल ना देखती है फुटपात भूख ना देखती है जात ना देखती है ओकात भूख ना देखती है खुशी ना देखती है गम भूख ना देखती है रात ना देखती है दिन भूख ना देखती है सच ना देखती है झूठ भूख ना देखती है प्यार ना देखती है धोखा भूख तो सिर्फ देखती है रोटी सिर्फ रोटी ।।।