अब मेरा देश कुछ यू ही बदल रहा है ,
आशाओं की रहम में वो पल रहा है ।
जंघा पे बिठाने पे होती महाभारत थी ,
अब तो सियासत यहां भी खेल रहा है ।
अपहरण पे कोई लंका जला देता था ,
अब तो मोहम्मबती में देश जल रहा है ।
जागती थी कहीं ना कहीं काली यहां पे ,
अब वो देश का बिता हुआ कल रहा है ।
-