साल भर की
कड़ाके की हाड-कंपाती सर्दी,
निर्दयी-निष्ठुर-निर्जीव-उजाड़ पतझड़,
भीषण-झुलसाती-जानलेवा गर्मी-सूखा-लू,
बेतरतीब बरसात-ओलों-बाढ़ के बाद
जो सुक़ून वाला एक महीना आता है ना
वो महीना
जो गुलाबी सी,
कुछ रूमानी सी,
हल्की-हल्की सी
ठंडक लाता है ना
कुछ उसी महीने सी हो तुम
सुनो! मेरा 'नवम्बर' हो तुम!
-साकेत गर्ग 'सागा'
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