जहां! में हमने मोहब्बत़, दो तरह, की देखी हैं......, कहीं! रहकर भी सब कुछ, बेरुखी देखी हैं......तो ! कहीं, कुछ न रहकर भी, रुह से रुह की, दिल्लगी, देखी हैं.....।।
बेंजुबां हो जाती हूं , जब तुमसे ही , जिक्र तुम्हारा हो ... रखकर अपने नब्ज पर हाथ , अपने ही हाल ए दिल से ... जाने क्यों घबरा जाती हूं !! तुम्हारे इश्क में , फिर इन खामोशियों का ... गुनगुना अच्छा लगता है , तुम्हारी सांसों में बसी .... शिकायत का सिलसिला , सुनना अच्छा लगता है .....