मैं रूद्र हूँ....
मैं रौद्र हूँ मैं रूद्र हूँ, मैं शब्दों का समुद्र हूँ,
मैं आदि हूँ मैं अंत भी, मैं राजा हूँ और रंक भी...
मैं हूँ सृजन और काल भी, मैं ही हूँ महाकाल भी..
मैं हूँ नदी और नीर भी, मैं हूँ धनुष और तीर भी..
मैं हूँ धरा गगन भी मैं, अविचल सा शांत मन भी मैं...
मुंडको की माल भी, खप्पर में कपाल भी...
मुनि भी हूँ और ज्ञान भी, मैं ही तपस्या ध्यान भी.....
मैं ही नटराज हूँ, मैं ही कल और आज हूँ..
मैं गीता का हूँ ज्ञान भी, मैं मंदिर भी शमशान भी..
मैं कृष्ण का सुदर्शन भी, मैं जीवन का दर्शन भी...
मैं सती का सतित्व भी, मैं काली का व्यक्तित्व भी,
मैं नाश हूँ, विनाश हूँ और मैं ही सर्वनाश हूँ....
मैं शिव भी हूँ, शिवाय भी, ब्रह्माण्ड सा महाकाय भी..
मैं काव्य हूँ, मैं वेद हूँ, मैं सृष्टी में अभेद हूँ..
मैं रूद्र हूँ, मैं रौद्र हूँ, मैं शब्दों का समुद्र हूँ
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