क्यूँ तुम्हें ढूंढता हूँ मैं चारों तरफ,
क्यूँ नहीं दिखती अब वो रवानी//
क्यूँ नयी सी लगती है हर बार सुनकर,
तेरी और मेरी मोहब्बत की कहानी//
क्यूँ बदलते मौसमों में खो गयी है,
हमारी जिंदगी की वो रुत सुहानी//
क्यूँ रूठ गया वो मिट्टी का पुतला,
क्यूँ कच्चे घड़े सी जिन्दगानी।।
क्यूँ कच्चे घड़े सी जिन्दगानी।।
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