सुनो!
मैं अपनी सारी गलतियों के लिये, तुमसे माफ़ी चाहता हूँ
और तुम्हारी गलतियों के लिये, तुमसे गवाही चाहता हूँ
मैं तुम से नाराज़ हूँ, क्या तुम्हें इतना भी इल्म नहीं है?
गाल खींच कर मुझे गले लगाना, तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं है?
क्या हुआ जो मैं तुम से, फ़िर ज़रा सा रूठ गया?
हाल-ए-दिल सुनाया, ज़वाब ना मिला, टूट गया?
क्या तुम्हें मेरी तकलीफ़ का, ज़रा भी अंदाज़ नहीं?
मैं तुमसे-ख़ुदसे क्यों हूँ ख़फ़ा, यह अहसास नहीं?
तुम कुछ भी कहती हो, हर दफ़ा, ज़िद कर सकती हो
पहले क्यों नहीं बताया, कह के गुस्सा भी हो सकती हो
और जो मैं कहूँ की, अब तुम कुछ कहो, तो रूठ जाती हो
हर बार, 'बस समझ जाओ ना तुम' कहकर टाल जाती हो
चलो यह भी मान लिया, हर बार मैं ही 'गुनहगार' होता हूँ
इस बार तुम मेरे लिये, हमारे लिये, गुनाहगार बन जाओ ना
चलो!
बंद करते हैं यह रोज-रोज का रुठना-मनाना
बस इस आख़री दफ़ा तुम मुझे आकर मनाना
सुनो!
अब ज़िद छोड़ो तुम्हारी, हार जाओ ना
मैं जो 'ज़िद्दी' हुआ हूँ, मुझे जिताओ ना
फ़िर से एक बार वही गाना गुनगुनाओ ना
भाग कर आओ और मुझे गले लगाओ ना
- साकेत गर्ग 'सागा'
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