कभी तो रुख बदलेगी कभी कभी तो हालात बदलेगी कभी तो तुम्हारे दिल में मेरे लिए जज़्बात बदलेगी जो दिल से लेकर आंखों से आंसु बनकर टपकेगी तब तुम्हें मेरे दर्द का एहसास बहुत सताएगी जब हवा तुम्हें छू कर गुजरेगी तब तुम्हें मेरी याद रातों में जगाएगी कभी तो रुख बदलेगी कभी तो हालात बदलेगी कभी तो तुम्हारे दिल में मेरे लिए जज़्बात बदलेगी
खो जाने दो ख़ुद को इन वादियों में इन नज़ारों में, दुनिया की रंगीनी इन भरे बाज़ारो में, भूल कर भी रुख़ ना करना चौकों का चौराहों का, वहां धन्धा चलता है मज़हब का सियासत का....
(पूरी कविता caption में पढ़ें)
- साकेत गर्ग
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