"रिश्तों की धूप छाँव में"
फितरत रोशनी बिखेरने की, तो सूरज सा जलना है।
रात के इन अंधेरों के बाद, तो दिन नया निकलना है।
किस बात का है गुरुर, सब तो धूमिल हो जायेगा
हम महज मिट्टी हैं, जिंदगी के साँचें में ढलना है।
खुशबू बिखेरो अच्छाई की, क्या लेना कौन कैसा है
कांटो के इस दौर में, हमें अब गुलाब सा फलना है।
अपनों से प्यार गैरों से नफरत, कुछ वाजिब नहीं
सुख-दुख के सफर में ही, इस जीवन को चलना है।
प्यार को प्यार नफरत को नफरत, रीत है जमाने की
निभा नफरत के बदले प्यार, इस ढांचे को बदलना है।
क्या मिलना इन बातों से, वो अच्छा है वो बुरा है
रिश्तों की धूप छाँव में ही, हम सबको पलना है।
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