उदास ना हो मन मेरे... जाने दे
परिंदे तो हज़ार उड़ते हैं
पऱ यह ख़्वाबों का आसमां.. है किसी का नहीं,
मैंने देखा है बादलों का सफ़र भी
उनकी ख़्वाइशों का भी एक दायरा है
है मंजिल पे पहुँचता कारवाँ.. किसी का नहीं,
इक़ मिथ्या छायापथ सा है नयनों में
सब जल रहे हैं पराये मोहः की अग्नि में
है अपने लिए बहा अश्रु यहाँ.. किसी का नहीं,
इस ज़िन्दगी के चलचित्र को निहारता
इक़ तू ही नहीं है मूक दर्शक सा
तलाश जिस सुकूँ बख़्श की है.. वो है तलिस्मयी जहाँ... किसी का नहीं,
चल.. क़दम बड़ा.. मुस्कुरा
रख जिजीविषा मृत्यु पर्यन्त
आख़िर.. यह ख़ुदा भी है पासबाँ किसी का नहीं,
उदास ना हो मन मेरे... जाने दे ना!
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