रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥ अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥ नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥ सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥
हमारी भी तीन तीन शादियां हुई लेकिन हमने कभी शादी के कार्ड में ये नहीं लिखवाया "मेरे भैया की छादी में जुलूल जुलूल" आना- विभू, कुम्भू, सूर्पनखा😂😂😂😀 -लंकापति रावण
स्त्री की परिकल्पना सीता है समाज रूपी लक्ष्मण ने खींची रेखा है राम और रावण पर पुरूषों का अधिकार है स्त्री को चलना उसके अनुसार है मैंने हर पल खुद को नियंत्रित देखा है नहीं बन सकी राम और रावण मेरी आत्मा में सिर्फ सीता है