ना राधा, ना मीरा, ना रुक्मिणी,
में तेरी पहली और आखरी मोहब्बत बनना चाहती थी
में लोग पढ़े वह इतिहास नहीं,
तेरे संग मेरा कल मेरा आज लिखना चाहती थी
आँखों का तेरे अश्र नहीं,
चेहरे की मुस्कान बनना चाहती थी
सफर की बाधा नहीं राहत-ए-मंज़िल की चाहत थी,
आधा किस्सा नहीं तेरे संग पूरा होना चाहती थी
वीर जारा का बरसो का इंतज़ार नहीं,
में हर पल तेरा साथ मांगती थी
इंसान हूँ मैं भगवान नहीं,
ना मैं राधा ना तू कृष्णा ये बताना चाहती थी
पर ये समाज है यही बाधा है,
कान्हा कि भी कोई मज़बूरी होगी
विधि के विधान को ना टाल सका कोई,
फिर चाहत और हक़ीक़त एक कैसे होगी
सच्ची मोहब्बत राधा कि अकेले ही रह गयी,
कुछ रस्में पूरी करके रुख्मिणी कान्हा कि हो गयी
मोहब्बत का एक प्रमाण ये भी है,
कृष्ण के नाम के साथ राधा हमेशा के लिए जुड़ गयी
वो अकसर राधा कहता था मुझे,
तो उतनी गहराई भी होगी
ख्यालों की कश्ती उसे भी सताती होगी,
राधा का जिक्र होते ही उसे भी तो मेरी याद आती होगी
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