हट गई पुरानी तस्वीरें, लग गये नये रंग दिवारों में
इक पुराना जख़्म भर गया पऱ दर्द रह गया दरारों में,
आज फिऱ वो छू कर मुझको, गुज़र गया अजनबीयों सा
सपना हूँ पऱ तेरा अपना हूँ यह कह गया इशारों में,
अपनी-अपनी मंजिल पे, कश्ती से मुसाफिर उतर गये
ख़ाली-ख़ाली से बंधे हम रह गये किनारों में,
इतनी सारी खवाईशें हैं के आसमां भरा है सपनों से
अब कौन सा तारा टूटेगा यह ढूंढूं कैसे हजारों में..!
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