दिन के उजाले को परास्त कर,
तिमीर जब घिर आता है।
तब रात-रानी खिल उठती है,
महक-महक कर, रथ पर सवार,
रात के राजा का स्वागत करती है।
गहराता जितना घोर अंधेरा,
रूप रात-रानी का और निखर आती है।
प्रेम की भीनी-भीनी खुशबू फैलाकर,
रात के आगोश में मदहोश रहती है।
अकेला है बहुत रात का राजा,
रात-रानी उसकी सहचरी है ,
भोर के धुंधलके तक चलती है साथ,
तभी तो रात की रात-रानी कहलाती है ।
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