खादी पहने, गाँधी टोपी डाले, हाथ जोड़ चल रहे है,
सहानुभूति का दंश लिए आज फिर किसी को डस रहे है।
कुछ देर पहले देख गरीबों को भूके पेट, इनकी ऑंख में आंसू आ गए,
नहीं पता अब के से देड कचोरी एक समोसा खा गए।
किसी ने पुछा साथ में है महिला कोन, बताये,
मंत्री जी की है प्रेमिका वो, पर सिस्टर बता गए।
पावर आने पर सारे वादे भूल गए,
था पैसा जो जनता का, बिन डकार के खा गए।-
मैं...
कलम हूँ,
सुना है...
मैं ही हूँ वो,
जो... परिवर्तन
लाया करती थी,
और... मैं परिवर्तन
लेने गयी थी,
पर... मिली नहीं
वो नस्ल मुझे ,
जो चाहिए थी
परिवर्तन की
इसलिए...
फिलहाल...
परावर्तित होकर
मैं... लौट आयी हूँ ,
मैं... फिर जाऊँगी ,
मैं... फिर आऊँगी ,
और... मैं लाऊँगी
परिवर्तन मेरे...
मनचाहे नस्ल की ।
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की जय हो..
ये मेरे भारत की जनता जनार्दन है ।
जो जीता वही सिकंदर है,
सचमुच मेरा भारत महान है,
अब कहां कोई सच्चा राजनीति में,
कि जिसकी लाठी उसकी भैंस है,
बिक रहा झूठ धड़ल्ले से यहां,
कोई उन्नीस तो कोई बीस हैं ।-
अच्छा हुआ कि राजनिती कि सोच जब आई तब रिश्ता न था
रिश्ते रहते राजनिति आ जाती तो रांझणा बन जाता ।।-
बेरोजगारी भाग-2
राज्यो के नेता दुष्टआत्मा
खा गये भेकेन्सी बड़े नीच आत्मा
वोट है तो इग्जाम करवाया
पर इग्जाम का रिजल्ट न आया
किया उपकार सब राज्य सरकारा
सब अभ्यार्थी भये बेरोजगारा
कुछ किये केन्सिल,कुछ पेन्डिंग में डाले
इग्जाम लिया न रिजल्ट निकाले
कर्जा पइसा हम पे करा के
सारा पइसा फार्म में लगवा के
सरकार वसुले टैक्स भेकेन्सी के नाम की
हम कथा सुनाते रिजल्ट्स के इन्तजार की
ये करूण पुकार है हम सब बेरोजगार की-
उद्धव ठाकरे नेक/अच्छे इन्सान हो सकते है मगर उनकी सरकार का कारनामा बेहद निराशाजनक है, लोगों के उम्मीद से छुट रहे है ।
#महाराष्ट्र-
हा... हा... साहब
बोहत गंदा है
बिना लागत और बगैर मेहनत से
और
औकात से ज्यादा हराम का कमाने का राजनिती यही सबसे बडा सरल धंदा है.-
आज कल बड़ा ही अजीब असमंजस सा, रहता है इस राजनितिक के दौर में।
आप नेता और सत्ता तो बदल सकतें, सोच को कैसे बदलोगे वोट के झौंर में।
झौंर-समूह-
सबका सब ही......जल का जल हुआ जाता है
दो घड़ी ठहरो जरा....वक्त इसका भी आता है
बिसरा तो नही बैठे......तूंफा के दो दौर गुजरे
अनुकम्पा के दोहन का हिसाब लिया जाता है
ठूंठ कर दी कहीं, उजाड़ सा डाला सब कुछ
हां हम मानव प्रजाति से लगते है, कुछ कुछ
नही, अब गौरैया का द्वार पर आना होता है
नियति चोला बदले जब,बस यही जाना जाता है
अनपेक्षित सा घटित, हतप्रभ करती घटनायें
लाशों को ढोता समय,वर्षा कह़र की प्रतिक्षायें
फिर से हाहाकार, चिल्लपों करते चहुँओर
खेल ये मौत का, हर साल खेला जाता है
🌸कनु🌸
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मेरा गाँव है आत्मनिर्भर की गिरकर वह फिर उठ खड़ा होगा,
मेरे पैर में आज पड़े छाले हैं, कल मुझपर ही राहत की राजनिती होगी।।-