कोरा काग़ज़ हूँ जो भी लिख दोगे मान लूँगा,
बोलता तो नहीं मगर , जो भी चाहोगे बोल दूँगा!!
दर्द-मरहम, ख़ुशी -ग़म, कि ख़्वाब,जो जी चाहे लिखो,
राज़दार हूँ... जब तक ना कहोगे ...मैं चुप ही रहूँगा!!
मिटा के मेरी हस्ती , वो महल बनाने की फ़िराक़ में हैं,
मैं तो बेज़ुबान हूँ साथी ! ...आख़िर मैं! क्या कहूँगा!!
बेज़ुबान परिंदा हूँ ,मगर वक़्त पर औक़ात दिखा देता हूँ,
रहने दो...ना छेड़ो सच को,ना सोचना कि मैं चुप रहूँगा!!
-