जब भी वो रद्दी वाला
पढ़े लिखों की कॉलोनी से आता था
मैं भाग के उसके पास जाता था
और उन पढ़े लिखों की ज्ञान की कीमत
एक रुपिया किलो ज्यादा लगाता था
उनके घर की रद्दियों से
मैं अपना भविष्य बनाता था
ज्ञान कहाँ रद्दी हुआ है
किसी के काम तो आता था।
अब शायद वो रद्दी वाला
बूढ़ा हो गया
आज कल इस ओर नहीं आता।
ज्ञान की भूख अब भी है मुझमें
मैं खुद रद्दी वाला बन कर हूँ जाता।
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