ग़ज़ल सृजन काफ़िया -ईत रदीफ़ - है वो
थकान को मेरी जो आराम दे , तू संगीत है वो,
चाहा था शिद्दत से जिसे, तू मनमीत है वो।
उसे देखने को तरसे, बिन सावन अश्रु बरसे,
दिल में बसी मेरे बरसों से, मेरी प्रीत है वो।
बसंत की बहार , तू होली के रंगों की बौछार
मई जून की गर्मी में , लगे शीत है वो।
फूलों की महक़ , उसकी हंसी की चहक,
भुला नहीं कभी जिसको , मेरा अतीत है वो।
'शाश्वत' हो चला हूँ , प्रेम में यूँ,
जैसे लफ्ज़ मेरे , तो गीत है वो।
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