मैंने देखी न थी कभी ये गरीबी मगर आज एक गरीब देखा
क्या होती ये दो वक़्त रोटी की कीमत आज बड़े करीब देखा,
मैं कहीं ठंडी छांव में था वो तपती धूप में बैठा सा
जालिम हैं ये दुनिया इनकी खातिर आज बड़ा अजीब देखा,
कोई अपना इनका जब किसी दर्द में रहता है
बेबसी में लाचार होकर कहीं किनारे पे रोता है,
हमें इक छोटी खरोच भी कई दफा बड़ा दर्द दे जाती
और ये ऐसी कई बड़ी खरोचे हर रोज सहता है,
पैर भी सुने पड़े थे और जिस्म भी बिखर रहा था
फिर भी तपती धूप में रोटी की खातिर वो जल रहा था,
चेहरे पे बड़ी मासूमियत थी,साहबो से उम्मीद लिए था
उस भीड़ में खड़ा हर इंसान आज बदनसीब लग रहा था,
कैसी बंजर सी है ये दुनिया जिन्हें इनकी कोई फिक्र नहीं
अबतक जिस समाज में था मैं,उसमें इनकी कोई जिक्र नहीं,
कैसा भयानक था ये सफर जो मैंने आज इतने करीब देखा
मैंने देखी न थी कभी ये गरीबी मगर आज एक गरीब देखा।।
@RITIK GUPTA
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