QUOTES ON #युद्ध_विमर्श

#युद्ध_विमर्श quotes

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15 MAR 2018 AT 13:58

युद्ध द्वंद और द्वेष लड़ाई
पूछे जब कोई यह कहां से आई
मन में युद्ध का जब आए विचार
कैसे हुआ इसका अविष्कार?
सोचने जब हम बैठे तब
मन में आए कई विचार
सब है लालच का एक खेल
जो तोड़ दे सारे बंधन मेल।
अकल जिसकी मोटी हो जाए
नियत जिसकी खोटी हो जाए
भौतिकता का जो प्रेमी बन जाए
जब मन में भर जाए लालच लोभ।
तब मन में जागे 100 इच्छाएं
और जब इच्छा पूरी हो ना पाए
इच्छा पूर्ति की लालसा में
वह तोड़े सारी प्रेम दीवार।
अपनी बुद्धि को खोकर वह
कर दे अपनों पर ही वार
भूल कर अपनों का प्यार
करे वह युद्ध का आविष्कार।

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14 MAR 2018 AT 21:14

महत्वाकांक्षा काया जिसकी
लोभ ही जिसकी जननी है
दम्भ क्रोध है हाथपांव
कुमति की यह करनी है

रुदन, तांडव रक्त पिपासा
जीवन पड़ा बिलखता जाय
कैसी लीला प्रभु है तेरी
अधर्म रहा है ख़ूब नचाय

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14 MAR 2018 AT 21:06

उसने किया है युद्ध का आविष्कार,
जिसको इंसानियत से नहीं बल्कि,
शक्ति रूपी मरीचिका से हो गई,
अतिश्योक्ति व भ्रमित पूर्ण प्यार।

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25 FEB 2019 AT 8:10

आज तुम ऐलान-ए-जंग की फिक्र में हो
कल अंजाम-ए-जंग से परेशां हों शायद

कुछ एहतियात बरत लो
बर्बादियों के फैसलों से पहले
हर बार जंग जायज़ नहीं

वतन पे सैनिक मर तक जाते हैं
सियासतदां रोते तक नहीं

मैं जंग के ख़िलाफ़ नहीं
पर मरता हर बार फ़ौज़ी है, कोई सियासतदां नहीं
जंग ही है, क्या कोई रास्ता और नहीं ?

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13 MAY 2020 AT 15:40

।।अंतरविद्रोह।।

तुम सिर्फ एक बार खड़े हो जाओ।
लड़खड़ाती है जीह्व तुम चुप हो जाओ
डगमगाते हैं पैर तुम गिर जाओ।
मगर, तुम सिर्फ एक बार खड़े हो जाओ।

क्या सत्य केवल कहने का विषय है?
मूक सत्य क्या कई प्रश्नों के उत्तर देता नहीं है?
नहीं सुन सकते आलोचना तो तुम बधिर हो जाओ
तुम सिर्फ एक बार खड़े हो जाओ।

नर सह सकता है वज्रघात सहस्त्र बार।
क्या वह जीत सकता है अंतर्द्वंद एक बार?
समक्ष अरि-सक्षम है विजय पर भी लगा प्रश्न चिन्ह है।
फिर भी ह्रदय कहता है प्राप्त कर उत्साह बल और युद्ध कर जाओ।
तुम सिर्फ एक बार खड़े हो जाओ।

माना मंजिल दूर बहुत है।
जो हटा नहीं मग से। क्या नहीं वह सूरवीर है।
आए परिवर्तन या ना आए तुम विद्रोह कर जाओ
तुम सिर्फ एक बार खड़े हो जाओ।

तुम सिर्फ एक बार खड़े हो जाओ।


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14 MAR 2018 AT 20:54

युध्द का आविष्कार है अंत की शुरूआत
मानवता के अंत की शुरूआत..
मानवीय जीवन के अंत की शुरूआत..

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26 MAR 2018 AT 11:24

किसने बनाई ढाल, किसने बनाई ये तलवार ?
किसने चलाई बंदूक, और किसने किया प्रहार ?
बहा के लहू की नदियां, किया मानवता को शर्मसार ।
चारो तरफ वेदनाओं के सुर सुन, मेरे मन आया एक विचार
किसने किया, अरे किसने किया..
किसने किया ये युध्द का अविष्कार?

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21 JAN 2021 AT 23:59

युद्ध की भेरी थी बज चुकी। थी ललकार की गरज उठी।
शंखनाद की उठी ऐसी तान।आरंभ था मानो अग्नि पुराण।
सब स्वाह होने को ही था। कुरुक्षेत्र लाल होने को ही था।
कोंतेय इतना क्षुब्ध हो उठा। हाथों से उसके गांडीव छूटा।
कहा हे वासुदेव मेरे सारथी। मैं इतना हूं आपका प्रार्थी।
युद्ध के बीच रथ को लीजिए। दो सेनाओं का दर्शन दीजिए।
रथ जा पहुंचा रण क्षेत्र बीच। दोनों सेनाओं के बीचों बीच।
एक ओर पांडव थे डटे डटे। धर्म और युद्ध में बटे बटे।
दूजे में कौरव के सेनानी थे। कुछ झुटे और अपमानी थे।
पर द्रोण भीष्म भी थे खड़े। अपनी प्रतिज्ञा में सब अड़े।
ये देख धनंजय बस रो पड़ा। प्रार्थना स्वर में बस ये कहा।
अपने ही कुल और गुरुओं से। ये युद्ध मुझसे ना हो पाएगा।
चाहे मुझे फिर कोई स्वर्ग दे। सहर्ष वो भीरू कहलाएगा।

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15 MAR 2018 AT 8:00

विनाश कर रहा मानव,
मानवता के धैर्य को,
चल रहा है पथ,
ले इंतकाम का शपथ,
युद्ध के संग खड़े,
जी रहा हर पल को,
कर रहा अविष्कार युद्ध को,.....

नाश को पुकारता,
लहु मांगती लहु,
काट रहा धर को,
कर रहा अविष्कार युद्ध को,......

बेरोजगारी की दहलीज़ पे,
भूख ले रही जन्म,
मर रहा इंसान,
मार के खुद की भूख को,
कर रहा अविष्कार युद्ध को,......

इंसान ही इंसान को मारता,
तरस रहा रोटी,कपड़ा और मकान को,
बढ़ा रहा मन की महत्वकांक्षा,
चुस रहा लहु,खा रहा इंसान को,
कर रहा अविष्कार युद्ध को,
हाँ कर रहा अविष्कार युद्ध को,.....



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15 MAR 2018 AT 19:30

कुछ व्यक्तियों के दकियानूसी विचार, संकीर्ण मानसिकता, राग-द्वेष, द्वंद की भावना एवं औरों को पराजित कर स्वयं के विजयी होने की लालसा ने ही युद्ध का आविष्कार किया है|

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