मुहब्बत की खुशबू बिखरने दो यारों
अभी ज़िंदगी को महकने दो यारों
न यूँ बढ़ के पहले सहारा दो हरदम
कि गिर के मुझे ख़ुद संभलने दो यारों
बहुत रख लिया सर्द लहज़ा ज़ुबाँ पे
कि लफ्ज़ों में नरमी पिघलने दो यारों
मैं थी मुंतज़िर कब से उनके लिये ही
लगा के गले चैन मिलने दो यारों
बड़ी हसरतों से सजाया है हुजरा
तमन्नाएँ दिल की निकलने दो यारों !!
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